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इस वर्ष की दिवाली कब है-
धनतेरस: सोमवार, 5 नवंबर 2018
नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली): मंगलवार, 6 नवंबर 2018
लक्ष्मी पूजा (मुख्य दिवाली): बुधवार, 7 नवंबर 2018
बाली प्रतिप्रदा या गोवर्धन पूजा: गुरुवार, 8 नवंबर 2018
यम द्वितीय या भाईदूज: शुक्रवार, 9 नवंबर 2018
यह पाँच दिन (धनतेरस, नरक चतुर्दशी, अमावश्या, कार्तिक सुधा पंचमी, यम द्वितीया या भाई दूज) का हिन्दू त्यौहार है जो धनतेरस (अश्वनी माह के पहले दिन का त्यौहार है) से शुरु होता है और भाई दूज (कार्तिक माह के अन्तिम दिन का त्यौहार है) पर खत्म होता है। दिवाली के त्यौहार की तारीख हिन्दू चन्द्र सौर कलैण्डर के अनुसार र्निधारित होती है। यह बहुत खुशी से घरों को सजाकर बहुत सारी लाइटों, दिये, मोमबत्तियॉ, आरती पढकर, उपहार बॉटकर, मिठाईयॉ, ग्रीटिंग कार्ड, एस एम एस भेजकर, रंगोली बनाकर, खेल खेलकर, मिठाईयॉ खाकर, एक दूसरे के गले लगकर औऱ भी बहुत सारी गतिविधियों के साथ मनाते है।
भगवान की पूजा और त्यौहारोत्सव हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, हमें अच्छे कार्यों को करने के प्रयासों के लिये शक्ति देता है, देवत्व के और ज्यादा करीब लाता है। घर के चारों ओर दिये और मोमबत्ती जलाकर प्रत्येक कोने को प्रकाशमान किया जाता है। यह माना जाता है कि पूजा और अपने करीबी प्रियजनों को उपहार दिये बिना यह त्यौहार कभी पूरा नहीं होता है। त्यौहार की शाम लोग दैवीय आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से भगवान की पूजा करते है। दिवाली का त्यौहार वर्ष का सबसे सुंदर और शांतिपूर्ण समय लाता है जो मनुष्य के जीवन में असली खुशी के पल प्रदान प्रदान करता है।
दिवाली के त्यौहार पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है ताकि सभी अपने मित्रों और परिवार के साथ त्यौहार का आनन्द ले सकें। लोग इस त्यौहार का बहुत लम्बे समय से इंतजार करते है और इसके नजदीक आते ही लोग अपने घरों, कर्यालयों, कमरों, गैराजों को रंगवाते और साफ कराते है और अपने कार्यालयों में नयी चैक बुक, डायरी और कलैण्डर वितरित करते है। वे मानते है कि साफ सफाई और त्यौहार मनाने से वे जीवन में शान्ति और समृद्धि प्राप्त करेंगें। सफाई का वास्तविक अर्थ दिल के हर कोने से सभी बुरे विचार, स्वार्थ और दूसरों के बारे में कुदृष्टि की सफाई से है।यह पाँच दिन (धनतेरस, नरक चतुर्दशी, अमावश्या, कार्तिक सुधा पंचमी, यम द्वितीया या भाई दूज) का हिन्दू त्यौहार है जो धनतेरस (अश्वनी माह के पहले दिन का त्यौहार है) से शुरु होता है और भाई दूज (कार्तिक माह के अन्तिम दिन का त्यौहार है) पर खत्म होता है। दिवाली के त्यौहार की तारीख हिन्दू चन्द्र सौर कलैण्डर के अनुसार र्निधारित होती है। यह बहुत खुशी से घरों को सजाकर बहुत सारी लाइटों, दिये, मोमबत्तियॉ, आरती पढकर, उपहार बॉटकर, मिठाईयॉ, ग्रीटिंग कार्ड, एस एम एस भेजकर, रंगोली बनाकर, खेल खेलकर, मिठाईयॉ खाकर, एक दूसरे के गले लगकर औऱ भी बहुत सारी गतिविधियों के साथ मनाते है।
भगवान की पूजा और त्यौहारोत्सव हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, हमें अच्छे कार्यों को करने के प्रयासों के लिये शक्ति देता है, देवत्व के और ज्यादा करीब लाता है। घर के चारों ओर दिये और मोमबत्ती जलाकर प्रत्येक कोने को प्रकाशमान किया जाता है। यह माना जाता है कि पूजा और अपने करीबी प्रियजनों को उपहार दिये बिना यह त्यौहार कभी पूरा नहीं होता है। त्यौहार की शाम लोग दैवीय आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से भगवान की पूजा करते है। दिवाली का त्यौहार वर्ष का सबसे सुंदर और शांतिपूर्ण समय लाता है जो मनुष्य के जीवन में असली खुशी के पल प्रदान प्रदान करता है।
व्यापारी अपने वर्ष के खर्च और लाभ जानने के लिये अपने बहीखातों की जॉच करते है। लोग उपहार देने के माध्यम से दुश्मनी हटाकर सभी से दोस्ती करते है। कॉलेज के छात्र अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और रिश्तेदारों को दिवाली कार्ड और एस एम एस भेजते है। आज कल इंटरनेट के माध्यम से दीवाली ई-कार्ड या दीवाली एसएमएस भेजने के सबसे लोकप्रिय चलन बन गया है। भारत में कुछ स्थानों पर दीवाली के मेले आयोजित किये जाते है जहां लोग आनंद के साथ नए कपड़े, हस्तशिल्प, कलाकृतियॉं, दीवार के पर्दे, गणेश और लक्ष्मी, रंगोली, गहने और उन घर के बच्चे एनीमेशन फिल्म देख कर, अपने दोस्तों के साथ चिङिया घऱ देख कर, दिवाली पर कविता गा कर, माता पिता के साथ आरती करके, रात को आतिशबाजी करके, दिये और मोमबत्ती जला कर, हाथ से बने दिवाली कार्ड देकर, खेल खेल कर यह त्यौहार मनाते है। घर पर माँ कमरे के बिल्कुल बीच में रंगोली बनाती है, नयी और आकर्षक मिठाईयॉ, नये व्यंजन जैसे गुँजिया, लड्डू, गुलाब जामुन, जलेबी, पेडे और अन्य तरह के व्यजंन बनाती है।
दीवाली कब मनाई जाती है
हिंदू कैलेंडर के अनुसार दीवाली अश्विन के महीने में कृष्ण पक्ष की 13 वें चंद्र दिन (जो भी अंधेरे पखवाड़े के रूप में जाना जाता है) पर मनाया जाता है। यह परम्परागत रुप से हर साल मध्य अक्टूबर या मध्य नवम्बर में दशहरा के 18 दिन बाद मनाया जाता है। यह हिन्दूओं का बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है।
दिवाली का त्यौहार हर साल बहुत सारी खुशियों के साथ आता है और पॉच दिनों से अधिक समय धनतेरस से भाई दूज पर पूरा होता है।कुछ स्थानों पर जैसे कि महाराष्ट्र में यह छह दिनों में पूरा होता है (वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ शुरू होता है और भईया दूज के साथ समाप्त होता है)।
दिवाली क्यों मनायी जाती है?
दिवाली हर साल हिन्दूओं और अन्य धर्म के लोगो द्वारा मुख्य त्यौहार के रुप में मनायी जाती है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवाली का त्यौहार मनाने के बहुत सारे कारण है और नये वर्ष को ताजगी के साथ शुरु करने में मनुष्यों के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोगों की यह मान्यता है कि जो वे इस त्यौहार पर करेगें वहीं पूरे साल करेगें। इसलिये लोग अच्छे काम करते है, धनतेरस पर खरीदारी करना, घर के प्रत्येक कोने को प्रकाशित करना, मिठाई बॉटना, दोस्ती करना, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी जी की शान्ति और समृद्धि पाने के लिये पूजा करना, अच्छा और स्वादिष्ट भोजन करना, अपने घरों को सजाना और अन्य गतिविधियॉ जिससे वे पूरे साल ऐसा कर सकें। शिक्षक नियमित क्लास लेते है, विधार्थी अधिक घण्टें अध्ययन करते है, व्यवसायी अपने खातों को अच्छे से तैयीर करते है ताकि वे पूरे साल ऐसे ही रहें। हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवाली मनाने के निम्नलिखित बहुत सारे पौराणिक और ऐतिहासिक कारण है।भगवान राम की विजय और आगमन: हिन्दू महाकाव्य रामायण के अनुसार, भगवान राम राक्षस राजा रावण को मारकर और उसके राज्य लंका को अच्छी तरह से जीतकर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य, अयोध्या, बहुत लम्बे समय(14 वर्ष) के बाद वापस आये थे। अयोध्या के लोग अपने सबसे प्रिय और दयालु राजा राम, उनकी पत्नी और भाई लक्ष्मण के आने से बहुत खुश थे। इसलिये उन्होनें भगवान राम का लौटने का दिन अपने घर और पूरे राज्य को सजाकर, मिट्टी से बने दिये और पटाखे जलाकर मनाया।
देवी लक्ष्मी का जन्मदिन: देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की स्वामिनी है। यह माना जाता है कि राक्षस और देवताओं द्वारा समुन्द्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी दूध के समुन्द्र (क्षीर सागर) से कार्तिक महीने की अमावश्या को ब्रह्माण्ड में आयी थी। यही कारण है कि यह दिन माता लक्ष्मी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिवाली के त्यौहार के रूप में मनाना शुरू कर दिया।
भगवान विष्णु ने लक्ष्मी को बचाया: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक महान दानव राजा बाली था, जो सभी तीनों लोक (पृथ्वी, आकाश और पाताल) का मालिक बनना चाहता था, उसे भगवान विष्णु से असीमित शक्तियों का वरदान प्राप्त था। पूरे विश्व में केवल गरीबी थी क्योंकि पृथ्वी का सम्पूर्ण धन राजा बाली द्वारा रोका हुआ था। भगवान के बनाये ब्रह्मांण्ड के नियम जारी रखने के लिए भगवान विष्णु ने सभी तीनों लोकों को बचाया था (अपने वामन अवतार, 5 वें अवतार में) और देवी लक्ष्मी को उसकी जेल से छुडाया था। तब से, यह दिन बुराई की सत्ता पर भगवान की जीत और धन की देवी को बचाने के रूप में मनाया जाना शुरू किया गया।
भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार डाला:मुख्य दिवाली से एक दिन पहले का दिन नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। बहुत समय पहले, नरकासुर नाम का राक्षस राजा(प्रदोषपुरम में राज्य करता था)था, जो लोगों पर अत्याचार करता था और उसने अपनी जेल में 16000 औरतों को बंधी बना रखा था। भगवान कृष्ण (भगवान विष्णु के 8 वें अवतार) उसकी हत्या करके नरकासुर की हिरासत से उन सभी महिलाओं की जान बचाई थी। उस दिन से यह बुराई सत्ता पर सत्य की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
राज्य में पांडवों की वापसी: महान हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार, निष्कासन के लम्बे समय(12 वर्ष) के बाद कार्तिक महीने की अमावश्या को पांडव अपने ऱाज्य लौटे थे। कोरवों से जुऐं में हारने के बाद उन्हें 12 वर्ष के लिये निष्कासित कर दिया गया था। पांडवों के राज्य के लोग पांडवों के राज्य में आने के लिए बहुत खुश थे और मिट्टी के दीपक जलाकर और पटाखे जलाकर पांडवों के लौटने दिन मनाना शुरू कर दिया।
विक्रमादित्य का राज्याभिषेक: राजा विक्रमादित्य एक महान हिन्दू राजा का विशेष दिन पर राज्यभिषेक हुआ तब लोगों ने दिवाली को ऐतिहासिक रुप से मनाना शुरु कर दिया।
आर्य समाज के लिए विशेष दिन: महर्षि दयानंद महान हिन्दू सुधारक के साथ साथ आर्य समाज के संस्थापक थे और उन्होंने कार्तिक के महीने में नया चाँद(अमावश्या) के दिन निर्वाण प्राप्त किया। उस दिन से इस खास दिन के उपलक्ष्य में दीवाली के रूप में मनाया जा रहा है।
जैनियों के लिए विशेष दिन: तीर्थंकर महावीर, जिन्होंने आधुनिक जैन धर्म की स्थापना की, उन्हें इस विशेष दिन दिवाली पर निर्वाण की प्राप्ति हुई जिसके उपलक्ष्य में जैनियों में यह दिन दीवाली के रूप में मनाया जाता है।
मारवाड़ी नया साल: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मारवाड़ी अश्विन की कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन पर महान हिंदू त्यौहार दीवाली पर अपने नए साल का जश्न मनाते है।
गुजरातियों के लिए नया साल: चंद्र कैलेंडर के अनुसार, गुजराती भी कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन दीवाली के एक दिन बाद अपने नए साल का जश्न मनाते है।
सिखों के लिए विशेष दिन: अमर दास (तीसरे सिख गुरु) ने दिवाली को लाल-पत्र दिन के पारंम्परिक रुप में बदल दिया जिस पर सभी सिख अपने गुरुजनों का आशार्वाद पाने के लिये एक साथ मिलते है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी वर्ष 1577 में दीवाली के मौके पर की गयी थी। हरगोबिंद जी (6 सिख गुरु) को वर्ष 1619 में मुगल सम्राट जहांगीर की हिरासत से ग्वालियर किले से रिहा किया गया था। 1999 में, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने भारतीय चर्च में अपने माथे में पर तिलक लगा कर ईसा मसीह के अंतिम भोज के स्मारक रात्रि भोज (प्रकाश का त्यौहार) का असाधारण प्रदर्शन किया था। यही तो दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली का इतिहास ऐतिहासिक रुप से, दिवाली भारत में बहुत प्राचीन काल से मनाया जा रहा है जब, लोग इसे मुख्य फसल के त्यौहार के रुप में मनाते थे। हालाकिं कुछ इस विश्वास के साथ इस त्यौहार को मनाते है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की शादी भगवान विष्णु के साथ हुई थी। बंगाली इस त्यौहार को माता काली (शक्ति की काली देवी) की पूजा करके मनाते है। हिन्दू इस शुभ त्यौहार को बुद्धिमत्ता के देवता गणेश (हाथी के सिर वाले भगवान) और माता लक्ष्मी (धन और समृद्धि की माता) का पूजा करके मनाते है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि दिवाली की उत्पत्ति इस प्रकार हुई; इस दिन देवी लक्ष्मी देवताओं और दानवों द्वारा बहुत लम्बे समय तक सागर मंथन के बाद दूध (क्षीर सागर) के समुन्द्र से बाहर आई। वह ब्रह्माण्ड में मानवता के उद्धार के लिये धन और समृद्धि प्रदान करने के लिये अवतरित हुई। इनका स्वागत और सम्मान करने के लिये लोगों ने देवी लक्ष्मी की पूजा की। वे बहुत खुश थे इसलिये उन्होंने एक दूसरे को मिठाईयॉ और उपहार वितरित किये।
दिवाली के पाँच दिन होते है जो निम्नलिखित है-
दिवाली का पहला दिन धनतेरस के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है घर में धन और समृद्धि का आना। लोग बर्तन, सोने और चॉदी के सिक्के, और अन्य वस्तुऍ खरीद कर इस विश्वास के साथ अपने घर लाते है कि घर में धन की वृद्धि होगी।
दिवाली का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी के नाम के जाना जाता है, जो इस विश्वास के साथ मनाया जाता है कि भगवान कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर को हराया गया था।
दिवाली का तीसरा दिन अमावश्या के नाम के जाना जाता है जो हिन्दू देवी लक्ष्मी (धन की देवी) की पूजा के इस विश्वास के साथ मनाया जाता है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है।
दिवाली का चौथा दिन बली प्रदा के नाम से जाना जाता है जो भगवान विष्णु की कथा से सम्बऩ्धित है जिन्होंने अपने वामन अवतार में राक्षस राजा बलि को हराया था। बलि बहुत महान राजा था किन्तु पृथ्वी पर शासन करते हुये वह लालची हो गया क्योंकि उसे भगवान विष्णु द्वारा असीमित शक्तियों की प्राप्ति का वरदान मिला था।
गोर्वधन पूजा इस विश्वास के साथ भी मनाया जाता है कि भगवान कृष्ण ने असहनीय काम करके इन्द्र के गर्व को हराया था।
दिवाली का पॉचवा दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है जो मृत्यु के देवता “यम” और उनकी बहन यामी के इस विश्वास के साथ मनाया जाता है। लोग इस दिन को बहन और भाई के एक दूसरे के प्रति प्रेम और स्नेह के उपलक्ष्य में मनाते है।
लोग दीवाली उत्सव का जगमगाते हुये दीपकों के प्रकाश, स्वादिष्ट मिठाईयों का आनंद लेकर मनाते है। यह त्यौहार भारत और देश के बाहर भी वर्षों पहले से मनाया जा रहा है। दिवाली मनाने की परम्परा हमारे देश के इतिहास से भी पुरानी है। भारत में दिवाली की उत्पत्ति का इतिहास विभिन्न प्रकार की किवदंतियों और पौराणिक कथाओं को शामिल करता है जो प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों जिन्हें पुराण भी कहते है; में वर्णित है। दिवाली की ऐतिहासिक उत्पत्ति के पीछे का वास्तविक कारण पहचानना आसान नहीं है। प्राचीन इतिहास के अनुसार, दिवाली की ऐतिहासिक उत्पत्ति के बहुत से कारण है।
दीवाली का जश्न मनाने के पीछे सबसे मशहूर और अच्छी तरह से ज्ञात इतिहास का महान हिंदू महाकाव्य रामायण में उल्लेख किया है। इसके अनुसार, राम 14 वर्ष का वन में एक लंबा जीवन जीने के बाद अपने राज्य में वापस आये थे। राम के वनवास के पीछे महान उद्देश्य लंका के दानव राजा रावण का वध करना था। अयोध्या के लोगों ने भगवान राम के अपने राज्य में लौटने का जश्न मनाया था। उस वर्ष से हर साल जश्न मनाने की यह महान हिंदू परंपरा बन गई।
दीवाली के इतिहास से जुड़ी एक और महान कहानी हिंदू महाकाव्य महाभारत में लिखी है जिससे पता चलता है कि पॉच पांण्डव भाई, जिन्हें पाण्डवों के नाम से भी जाना जाता है, अपने राज्य हस्तिनापुर 12 वर्ष के निष्कासन और 1 साल का अज्ञातवास पूरा करके लौटे थे क्योंकि वे कौरवों द्वारा जुऍ के खेल में हरा दिये गये थे। उनका राज्य में सभी जगह जगमगाते दीयों के प्रकाश के साथ राज्य की जनता द्वारा स्वागत किया गया। यह माना जाता है दीवाली पांडवों की घर वापसी के उपलक्ष्य में मनायी जाती है।
अन्य पौराणिक इतिहास के अनुसार दीवाली का जश्न मनाने के पीछे धन की देवी लक्ष्मी का सागर से जन्म है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, बहुत समय पहले अमृत (अमरता का अमृत) और नवरत्न प्राप्त करने के उद्देश्य से देवताओँ और असुरों दोनों ने सागर मंथन किया। देवी लक्ष्मी (दूध के सागर के राजा की बेटी) कार्तिक के महीने का नये चाँद के दिन पैदा हुई जिनकी शादी भगवान विष्णु से हुई। यही कारण है कि यह दिन दिवाली के त्यौहार के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
पवित्र हिंदू पाठ, भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने सभी तीनों लोकों को बचाने के लिए अपने वामन अवतार में पृथ्वी पर सत्तारूढ़ एक शक्तिशाली दानव राजा बलि को हराया था। भगवान विष्णु उस के पास पहुंचे और 3 पैर जगह मॉगी। बलि ने हाँ कहा इसलिये भगवान विष्णु ने अपने तीन पैर जगह में सभी तीनों लोकों को माप लिया। दिवाली इस बुराई की सत्ता पर इस जीत को याद करने के लिए हर साल मनायी जाती है।
भागवत पुराण के अनुसार एक और इतिहास है कि शक्तिशाली क्रूर और भयानक राक्षस राजा नरकासुर था जिसने आकाश और पृथ्वी दोनों पर विजय प्राप्त की थी। वह कई महिलाओं को बचाने के उद्देश्य से जो राक्षस द्वारा बंद कर दी गयी थी हिंदू भगवान कृष्ण द्वारा मारा गया। लोग नरकासुर की हत्या से बहुत खुश थे और बहुत खुशी के साथ उन्होंने इस घटना का जश्न मनाया। अब यह पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि दीवाली का वार्षिक समारोह के द्वारा इस घटना को याद किया जाता है।
दीवाली का जश्न मनाने के पीछे एक अन्य पौराणिक इतिहास है कि बहुत समय पहले एक राक्षस था, जिसने लड़ाई में सभी देवताओं को पराजित किया और सारी पृथ्वी और स्वर्ग हिरासत में ले लिया। तब माँ काली ने देवताओं, स्वर्ग और पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से देवी दुर्गा के माथे से जन्म लिया था। राक्षसों की हत्या के बाद उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और जो भी उनके सामने आया उन्होंने हर किसी की हत्या करनी शुरू कर दी। अंत में वह केवल उनके रास्ते में भगवान शिव के हस्तक्षेप द्वारा रोकी गयी। देश के कुछ भागों में, उस पल यादगार बनाने के लिए उसी समय से ही यह दिवाली पर देवी काली की पूजा करके मनाया जाता है।दीवाली के इतिहास से जुड़ी एक और महान कहानी हिंदू महाकाव्य महाभारत में लिखी है जिससे पता चलता है कि पॉच पांण्डव भाई, जिन्हें पाण्डवों के नाम से भी जाना जाता है, अपने राज्य हस्तिनापुर 12 वर्ष के निष्कासन और 1 साल का अज्ञातवास पूरा करके लौटे थे क्योंकि वे कौरवों द्वारा जुऍ के खेल में हरा दिये गये थे। उनका राज्य में सभी जगह जगमगाते दीयों के प्रकाश के साथ राज्य की जनता द्वारा स्वागत किया गया। यह माना जाता है दीवाली पांडवों की घर वापसी के उपलक्ष्य में मनायी जाती है।
अन्य पौराणिक इतिहास के अनुसार दीवाली का जश्न मनाने के पीछे धन की देवी लक्ष्मी का सागर से जन्म है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, बहुत समय पहले अमृत (अमरता का अमृत) और नवरत्न प्राप्त करने के उद्देश्य से देवताओँ और असुरों दोनों ने सागर मंथन किया। देवी लक्ष्मी (दूध के सागर के राजा की बेटी) कार्तिक के महीने का नये चाँद के दिन पैदा हुई जिनकी शादी भगवान विष्णु से हुई। यही कारण है कि यह दिन दिवाली के त्यौहार के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
पवित्र हिंदू पाठ, भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने सभी तीनों लोकों को बचाने के लिए अपने वामन अवतार में पृथ्वी पर सत्तारूढ़ एक शक्तिशाली दानव राजा बलि को हराया था। भगवान विष्णु उस के पास पहुंचे और 3 पैर जगह मॉगी। बलि ने हाँ कहा इसलिये भगवान विष्णु ने अपने तीन पैर जगह में सभी तीनों लोकों को माप लिया। दिवाली इस बुराई की सत्ता पर इस जीत को याद करने के लिए हर साल मनायी जाती है।
भागवत पुराण के अनुसार एक और इतिहास है कि शक्तिशाली क्रूर और भयानक राक्षस राजा नरकासुर था जिसने आकाश और पृथ्वी दोनों पर विजय प्राप्त की थी। वह कई महिलाओं को बचाने के उद्देश्य से जो राक्षस द्वारा बंद कर दी गयी थी हिंदू भगवान कृष्ण द्वारा मारा गया। लोग नरकासुर की हत्या से बहुत खुश थे और बहुत खुशी के साथ उन्होंने इस घटना का जश्न मनाया। अब यह पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि दीवाली का वार्षिक समारोह के द्वारा इस घटना को याद किया जाता है।
यह माना जाता है कि भारत के एक महान और प्रसिद्ध हिन्दू राजा विक्रमादित्य थे, जिन्हें अपने ज्ञान, साहस और बड़ी हार्दिकता के लिए जाना जाता था। उनका राज्य के नागरिकों द्वारा भव्य समारोह के साथ राजअभिषेक हुआ और उनके राजा बनने की घोषणा की गयी। यही कारण है कि यह घटना दीवाली की वार्षिक विधि के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म के एक महान सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने, कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था। उन्होंने वर्ष 1875 में आर्य समाज (रईसों की सोसायटी) की स्थापना की। उन्हें पूरे भारत में हिंदुओं द्वारा दीवाली पर याद किया जाता है। आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक, वर्धमान महावीर को, समान दिन पर ज्ञान की प्राप्ति हुई। यही कारण है कि जैन धर्म के लोग भी दिवाली समारोह मनाते है। दिवाली का सिखों के लिये भी विशेष महत्व है क्योंकि उनके गुरु अमर दास ने एक साथ गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दिवाली पर एक अवसर संस्थागत किया था। कुछ स्थानों पर यह माना जाता है कि, दिवाली ग्वालियर किले से मुगल बादशाह जहांगीर की हिरासत से छठे धार्मिक नेता, गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई की स्मृति में मनायी जाती है।
पांच दिनों के दिवाली समारोह हैं:
धनतेरस या धनवंन्तरी- धनतेरस का अर्थ है (धन का अर्थ है संपत्ति और तृयोदशी का अर्थ है 13वाँ दिन) चंद्र मास के 2 छमाही के 13वें दिन में घर के लिए धन का आना। इस शुभ दिन पर लोग बर्तन, सोना खरीदकर धन के रूप में घर लाते है। यह भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक) की जयंती (जन्मदिन की सालगिरह) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनकी (देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन के दौरान) उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी।
नरक चतुर्दशी: नरक चतुर्दशी 14वें दिन पडती है, जब भगवान कृष्ण (भगवान विष्णु के अवतार) ने राक्षस नरकासुर को मारा था। यह बुराई की सत्ता या अंधकार पर अच्छाई या प्रकाश की विजय के संकेत के रुप में जश्न मनाया जाता है। आज के दिन लोग जल्दी (सूर्योदय से पहले) सुबह उठते है, और एक खुशबूदार तेल और स्नान के साथ ही नये कपडे पहनकर तैयार होते है।तब वे सभी अपने घरों के आसपास बहुत से दीपक जलाते है और घर के बाहर रंगोली बनाते है। वे अपने भगवान कृष्ण या विष्णु की भी एक अनूठी पूजा करवाते है। सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व गंगा के पवित्र जल में स्नान करने के बराबर है। पूजा करने के बाद वे राक्षस को हराने के महत्व में पटाखे जलाते है। लोग पूरी तरह से अपने परिवार और दोस्तों के साथ उनके नाश्ता और लंच करते है।
लक्ष्मी पूजा: यह मुख्य दिन दीवाली जो लक्ष्मी पूजा (धन की देवी) और गणेश पूजा (सभी बाधाओं को हटा जो ज्ञान के देवता) के साथ पूरी होती है। महान पूजा के बाद वे अपने घर की समृद्धि और भलाई का स्वागत करने के लिए सड़कों और घरों पर मिट्टी के दीये जलाते है।बाली प्रतिप्रदा और गोवर्धन पूजा: यह उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के गर्व को पराजित करके लगातार बारिश और बाढ से बहुत से लोगों (गोकुलवासी) और मवेशियों के जीवन की रक्षा करने के महत्व के रुप में इस दिन जश्न मनाते है। अन्नकूट मनाने के महत्व के रुप में लोग बडी मात्रा में भोजन की सजावट(कृष्ण द्वारा गोवर्धन पहाडी उठाने प्रतीक के रुप में) करते है और पूजा करते है।यह दिन कुछ स्थानों पर दानव राजा बाली पर भगवान विष्णु (वामन) की जीत मनाने के लिये भी बाली-प्रतिप्रदा या बाली पद्धमी के रूप में मनाया जाता है। कुछ स्थानों जैसे महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या नव दिवस (अर्थात् नया दिन) के रुप में भी मनाया जाता है और सभी पति अपनी पत्नियों को उपहार देते है। गुजरात में यह विक्रम संवत् नाम से कैलेंडर के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
यम द्वितीया या भाई दूज: यह भाइयों और बहनों का त्यौहार है जो एक दूसरे के लिए अपने प्यार और देखभाल का प्रतीक है। यह जश्न मनाने के महत्व के पीछे यम की कहानी (मृत्यु के देवता) है। आज के दिन यम अपनी बहन यामी (यमुना) से मिलने आये और अपनी बहन द्बारा उनका आरती के साथ स्वागत हुआ और उन्होंने साथ में खाना भी खाया। उन्होनें अपनी बहन को उपहार भी दिया।
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happy dipawali sir
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Nice Post