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ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं ( Types of Operating system )

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ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार प्रोसेसर शिड्युलिंग ,मेमोरी मैनेजमेंट , फाइल मैनेजमेंट तथा इनपुट /आउटपुट मैनेजमेंट के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1.बैच ऑपरेटिंग सिस्टम:- कम्प्युटर के शुरूआती दिनों में कम्प्युटर सिस्टम में इनपुट डिवाइस के रूप में कार्ड-रीडर्स तथा टेप ड्राइव्स, एवम् आउटपुट डिवाइस के प्रयोग हुआ करते थे। उस समय यूज़र कम्प्युटर सीधे-सीधे इन्ट्रैक्ट न कर, एक जॉब तैयार किया करते थे,जो प्रोग्राम डेटा और कंट्रोल इन्फॉर्मेशन का बना हुआ होता था।
यूज़र अपने जॉब को तैयार करने के पश्चात् कम्प्युटर ऑपरेटर को सौंप देता था। इसी प्रकार दूसरा, तीसरा या अन्य यूज़र अपने-अपने जॉब्स तैयार कर कम्प्युटर ऑपरेटर को सौंप देते थे। जॉब्स, पंच कार्ड्स पर तैयार किए जाते थे। कम्प्युटर ऑपरेटर सभी जॉब्स को एक साथ लोड कर उन्हें प्रोसेस करता था। कुछ मिनटों, घंटों या दिनों के पश्चात् जॉब्स प्रोसेस होकर आउटपुट देते थे। आउटपुट में प्रोग्राम के परिणाम के साथ-साथ मेमोरी की अंतिम स्थिति की डम्प तथा रजिस्टर के कनटेन्ट्स भी होते थे, जो प्रोग्राम की डिबगिंग में सहायक होते थे। प्रोसेसिंग स्पीड को बढ़ाने के लिए कम्प्युटर ऑपरेटर समान प्राथमिकता वाले जॉब्स को एक साथ समुहित करके, उन्हें समूह में कम्प्यूटर द्वारा रन करे हैं। बैच प्रोसेसिंग में सीपीयू के आइडल टाइम को कम करने के लिए रेसिडेंट मॉनिटर नामक एक प्रोग्राम क्रिएट किया गया,जो हमेशा रेसिडेंट मेमोरी में निवास करता था।रेसिडेंट मॉनिटर प्रोग्रामर द्वारा कन्ट्रोल कार्ड्स के माध्यम से दिए गए कमान्ड के अनुसार कार्य करता था।बैच प्रोसेसिंग इन्वायरमेंट में अक्सर आइडल रहता था, क्योंकि इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस की गति की तुलना में काफी धीमी होती है। कम्पयूटर सिस्टम के रिसोर्सेस का अधिकतम उपयोग करने के लिए इनपुट/आउटपुट और प्रोसेसिंग ऑपरेशन को एक-दुसरे से ओवरलैप करने के लिए चैनल्स,पेरिफेरल कंट्रोलर्स,तथा समर्पित इनपुट/आउटपुट प्रोसेसर्स का विकास हुआ। कम्पयूटर सिस्टम के परफॉमेन्स को बढ़ाने के लिए, इसके अलावा बफरिंग और स्पूलिंग नामक दो अन्य एप्रोच भी विकसित किए गए। बफरिंग में डेटा को इनपुट डिवाइस से रीड करने के पश्चात् सीपीयू इसे प्रोसेस करता है तथा प्रोसेसिंग के शुरू होने से ठीक पहले इनपुट डिवाइस अगले इनपुट को रीड करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा निर्देशित किया जाता है। इस प्रकार सीपीयू और इनपुट डिवाइस दोनों ही व्यस्त रहते हैं। सीपीयू प्रोसेस्ड डेटा को तब तक बफर में स्टोर करके रखता है, जब तक कि ये डेटा आउटपुट डिवाइस द्वारा स्वीकार नहीं कर लिए जाते हैं। स्पूलिंग़, साइमलटैनिस पेरिफेरल ऑपरेशन ऑन लाइन का संक्षिप्त रूप है, स्पूलिंग भी एक मैथड है जिसके द्वारा सीपीयू एक से अधिक जॉब के इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट के बीच ओवरलैप करता है। स्पूलिंग की प्रक्रिया को कार्यान्वित करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम, स्पूलर का प्रयोग करता है। 2. मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम:- मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम में मल्टीप्रोग्रामिंग तकनीक निम्न तरीके से कार्य करती है-
1. मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम एक से अधिक जॉब्स को मेमोरी में एक साथ लोड करता है।
2. ऑपरेटिंग सिस्टम इसमें से एक को एक्जक्यूट करना शुरू करता है।
3. जब कोई जॉब एक्जक्यूट कर रहा होता है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम उन सभी का एक क्यू मेनटेन करता है, जो सीपीयू की उपलब्घता के लिए प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।
4. जब वर्तमान में एक्जक्यूट हो रहे जॉब में इनपुट-आउटपुट ऑपरेटिंग की आवश्यकता होती है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम अगले जॉब की प्रोसेसिंग के लिए सीपीयू को उस जॉब पर स्थानान्तरित कर देते हैं।
5. जब पहले वाले जॉब के इनपुट-आउटपुट आपरेशन समाप्त होते हैं, तो ऑपरेटिंग सिस्टम पुनः इसे क्यू में रख देता है ताकि जब सीपीयू उपलब्घ हो तो इसकी बाकी प्रोसेसिंग पूरी की जा सके।
6. इस प्रकार ऑपरेटिंग सिस्टम सीपीयू के कंट्रोल को एक जॉब से दुसरे जॉब पर स्थानान्तरित करता रहता है। परिणामस्वरूप सीपीयू कभी भी आइडल स्थिति में नहीं रहता है।

3. टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम :- टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम में, सीपीयू प्रत्येक यूज़र के लिए एक क्रम में समय की एक समान मात्रा एलोकेट करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रत्येक यूज़र को सीपीयू द्वारा दिया जाने वाला समय टाइम-स्लाइस कहलाता है। यह टाइम- स्लाइस, 5 से 100 मिलीसेकण्ड्स तक का होता है।टाइम-शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम में उचित रिस्पॉन्स टाइम को प्राप्त करने के लिए जॉब्स को मेन मैमोरी से डिस्क में और डिस्क से मेन मैमोरी में स्वैप करने की आवश्यकता होती है। वर्चुअल मेमोरी इसी प्रकार की एक तकनीक है, जो वैसे जॉब्स को प्रोसेस करने के लिए प्रयुक्त होता है, जो मेन मेमोरी में पूर्णरूपेण नहीं होते हैं। अतः वर्चुअल मेमोरी मेथड द्वारा वैसे जॉब्स को प्रोसेस किया जाता है, जिनका साइज फिज़िकल मेमोरी से बड़ा होता है।

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4. मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम:- प्रोग्राम के रनिंग स्टेट को प्रोसेस या टास्क कहा जाता है।मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम को मल्टीप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है,जो दो या दो से अधिक सक्रिय प्रोसेस का एक साथ समर्थन करता है। मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम दो या दो से अधिक प्रोसेसेस,जो एक साथ एक्ज़िक्यूशन स्टेट में हों,को प्राइमरी मेमोरी में एक साथ रख कर प्रोसेस कर सकता है। 5. नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम:- नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम, सॉफ्टवेयर तथा एसोसिएटेड प्रोटोकॉल्स का सग्रंह होता ,जो ऑटोनॉमस कम्प्युटर का एक समूह होता है तथा कम्प्युटर्स एक नेटवर्क में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम में यूजर्स को सभी कम्प्यूटर के अस्तित्व की जानकारी होती है तथा कोई भी यूज़र किसी भी कम्प्यूटर में लॉगइन कर सकता है एवं फाइलों को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में कॉपी कर सकता है। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं ,जो इसे डिस्ट्रिब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम से भिन्न करती हैं- - प्रत्येक कम्प्यूटर का अपना ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। - प्रत्येक यूज़र अपने सिस्टम पर काम करता है,किसी अन्य सिस्टम का उपयोग करने के लिए उस सिस्टम में रिमोट लॉगइन करने की आवश्यकता होती हैं। - प्रत्येक यूज़र इस बात सें अवगत होता है कि उसकी फाइल्स नेटवर्क में कहां (किस सिस्टम में)रखी हुई हैं।अतः यूज़र अपने फाइल्स को फाइल ट्रान्सफर कमाण्ड्स द्वारा एक से दूसरे सिस्टम में मूव कर सकते हैं। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम की क्षमताओं के अन्तर्गत- - यूज़र्स को नेटवर्क होस्ट के विभिन्न रिसोर्सेस को एक्सेस करने की अनुमती प्रदान करना। - एक्सेस को नियंत्रित करना ताकि नेटवर्क के खास रिसोर्सेस को वे यूज़र ही एक्सेस कर सकें, जिन्हें उचित ऑथराइजेशन प्रदान की गई हो। - यूज़र्स को रिमोट रिसोर्सेस का उपयोग लोकल रिसोर्सेस के समान करने की क्षमता प्रदान करना। 6. डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम:- डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम में यूज़र ठीक उसी प्रकार रिमोट रिसोर्सेस का उपयोग करते हैं जिस प्रकार लोकल रेसोर्सेस का। एक साइट से दूसरे साइट पर डाटा और प्रोसेसेस के माइग्रेशन को डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम ही नियंत्रित करता है न कि यूज़र। कभी-कभी नेटवर्क में डाटा को ट्रान्सफर करने की बजाए कम्प्यूटेशन को ट्रान्सफर किया जाता है। कम्प्यूटेशन को ट्रान्सफर करने की प्रक्रिया कम्प्यूटेशन माइग्रेशन कहलाती है। प्रोसेस माइग्रेशन, कम्प्यूटेशन माइग्रेशन का लॉजिकल एक्सटेंशन है। डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम में जब भी किसी प्रोसेस को एक्ज़िक्यूट किया जाता है तो वह प्रोसेस उस साइट पर पूर्ण रूपेण एक्ज़िक्यूट नहीं होता है,जिस पर उसे प्रारम्भ किया गया हो। बल्कि वह प्रोसेस विभिन्न साइट्स पर उप-प्रोसेसेस में विभाजित होकर एक्ज़िक्यूट होता है।

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